न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।
न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।
निकलूं अगर मयखाने से तो
शराबी ना समझना दोस्त,
मंदिर से निकलता..
हर शख्स भी तो भक्त नहीं होता |
ढूंढ तो लेते अपने प्यार को हम,
शहर में भीड़ इतनी भी न थी.
पर रोक दी तलाश हमने,
क्योंकि वो खोये नहीं थे, बदल गये थे.
हाँ खलती हैं कमी तुम्हारी,
पर सबके सामने रो भी नही सकते।।
तुम्हारी उन बातों को यादों को भुलाकर हम सो भी नही सकते।
ओर न जाने किस मोड़ पर आ गयी है, मोहब्बत मेरी,
उनको खो भी नही सकते और उनके हो भी नही सकते।
दिल मैं हर राज़ दबा कर रखते है,
होंटो पर मुस्कराहट सजाकर रखते है,
ये दुनिया सिर्फ़ खुशी मैं साथ देती है,
इसलिए अपने आँसुओ को छुपा कर रखते है।
होगा तू बादशाह शायरी का मैं भी शायरी की रानी हूँ
लबो पर रखती हूँ तेरे अल्फाजों को ये ना समझ खारा पानी हूँ
तुमने कहा था आँख भर कर देख लिया करो मुझे,
पर अब आँख भर आती है
और तुम नज़र नहीं आते हो.
सुनो कितना फर्क एक पागल शब्द में.
जमाना कहे तो गुस्सा और तुम कहो तो प्यार आता है.
वो सज़दा ही क्या..जिसमे सर उठाने का होश रहे
इज़हारे इश्क़ का मज़ा तो तब है
जब मै खामोश रहूँ और… तू बैचेन रहे.
हम तो जी रहे थे उनका नाम लेकर,
वो गुज़रते थे हमारा सलाम लेकर,
कल वो कह गये भुला दो हुमको,
हमने पुछा कैसे..
वो चले गये हाथो मे जाम देकर |